जितिया व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाला व्रत.... कब है, पूजन विधि, क्यों महिलाएं तीन दिन रहती हैं निर्जला....
जितिया व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाला व्रत.... कब है, पूजन विधि, क्यों महिलाएं तीन दिन रहती हैं निर्जला....
जितिया व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए रखा जाता है. माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करतीं हैं,ऐसी मान्यताएं हैं कि जो लोग संतान की कामना करते हैं उन्हें भी यह व्रत करने से जल्दी संतान प्राप्त होती है.
संतान की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाले जिउतिया व्रत को लेकर पंचांग एक मत नहीं हैं। कहीं लोग विश्वकर्मा जयंती के दिन 17 सितंबर से नहाय खाय से शुरू कर रही हैं, वहीं कहीं-कहीं 18 सितंबर को माताएं जिउतिय,
जिउतिया व्रत संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं यह व्रत रखती हैं. जितिया व्रत बहुत कठिन होता है, इस साल कब है यह व्रत, क्या है इस व्रत का महत्व, पूजन तिथि और क्या है इसके पीछे की कथा जानिए,
विश्वकर्मा जयंती के दिन 17 सितंबर से नहाय खाय से शुरू कर रही हैं, वहीं कहीं-कहीं 18 सितंबर को माताएं जिउतिया का व्रत करेंगी,अश्विनी मास कीअष्टमी तिथि को जिउतिया व्रत किया जाता है, इस बार अष्टमी तिथि 17 सितंबर के दिन दोपहर से लग रही है, इसलिए उदया तिथि के अनुसार 18 को यह व्रत किया जाएगा। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास ऱखती हैं और अपनी संतान की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य व सुख सौभाग्य की कामना करती हैं। इस व्रत में जीमूतवाहन की कथा को सुना जाता है।
यह व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए रखा जाता है. माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस उपवास में महिलाएं जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करतीं हैं,ऐसी मान्यताएं हैं कि जो लोग संतान की कामना करते हैं उन्हें भी यह व्रत करने से जल्दी संतान प्राप्त होती है.
व्रत के लिए भोर में उठकर स्नान करना चाहिए और फिर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए.इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल साफ करना चाहिए.व्रत के नियमों के अनुसार,एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है और उसके पास एक पाकड़ की डाल खड़ी की जाती है.फिर,शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की मूर्ति को जल के पात्र में स्थापित किया जाता है. सूर्य को पानी डालने के बाद ही महिलाएं कुछ खाती हैं.
जिउतिया व्रत दो दिनों का है।
बनारसी पंचांग - 18 सितंबर रविवार को जिउतिया व्रत
19 सितंबर सोमवार को सुबह पारण , नहाय-खाय 17 सितंबर
मिथिला पंचांग -16 सितंबर शुक्रवार को नहाए खाए,17 को व्रत
18 सितंबर को शाम को पारण
मिथिला के अनुसार -17 सितंबर शनिवार, दोपहर 3:06 से अष्टमी तिथि प्रारंभ
18 सितंबर को दिन में 4:49 तक
बनारसी पंचांग के अनुसार -18 सितंबर को अष्टमी का व्रत श्रेष्ठ
बनारसी पंचांग-अष्टमी तिथि 17 सितंबर को दोपहर 2: 56 मिनट से
18 सितंबर को 4:39 तक
जितिया व्रत की कथा और पारण
जितिया व्रत की कथा और पारण की शुरुआत और पारण दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। व्रत के शुरू में महिलाएं सुबह सरगी खाती हैं। इसके बाद शाम को अग्रदेव भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा के साथ जीमूतवाहन की कथा सुनती हैं। खीरा, चना, पेड़ा, धूप की माला, लांग, इलाइची, पान-सुपारी सहित अन्य सामग्रियां अपने-अपने विधान अनुसार अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद पारण में इस दिन मडुआ की रोटी के साथ -साथ नोनी साग और सात प्रकार की सब्जी बनाने की परंपरा है।