मां सिद्धेश्वरी काली,साधना और सिद्धि प्रदान करने वाली माता , अष्टमी-नवमी को होती है विशेष पूजा...
मां सिद्धेश्वरी काली,साधना और सिद्धि प्रदान करने वाली माता ,
अष्टमी-नवमी को होती है विशेष पूजा...
पटना के बांसघाट स्थित सिद्धेश्वरीकाली मंदिर मंदिर की स्थापना लगभग तीन सौ वर्ष पहले श्मशान घाट पर अघोर पंथ के तांत्रिकों ने की थी, इन दिनों सभी मंदिरों को सजाया जाता है और माहोल पूरी तरह से भक्तिमय में हो जाते हैं। कुछ लोग अपने घरों में ही सभी व्यवस्थाओं के साथ नौ दुर्गा की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। दुर्गा पूजा के रूप में हम स्त्री शक्ति की पूजा करते हैं।
मंदिर के न्यास ट्रस्ट के सचिव शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि यहां पर दो महिलाएं सती हुई थीं,
जिस जगह पर यह मंदिर है, कभी यहां श्मशान था। यानी मुर्दे जलाए जाते थे। बाद में देशभर के अघोरी यहां आकर सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना करने लगे। 24 घंटे औघड़ों का जमावड़ा होता था। लेकिन, साधना करने आए एक संत ब्रह्मानंद जी यही रहने लगे और एक अघोरी मुक्तिनाथ चौधरी उर्फ गोस्वामी जी के साथ मिलकर काली की मूर्ति स्थापित की। तब से यहां काली की पूजा होने लगी। कहते हैं, सात नरमुंडों पर स्थापित है यहां मां काली की मूर्ति। करीब 60 साल पहले मंदिर झोपड़ीनुमा था। 1990 के दशक में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ, तब मंदिर भव्य स्वरूप में आया।
शाम ढलते ही बाजारों में भीड़ उमड़ परती है । बाजार में लाल चुनरी, लाल वस्त्र, मौली, शृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल, धूप, अगरबत्ती, नारियल, दुर्गा सप्तशती किताब, कलश, देवी की प्रतिमा की खरीदारी करने में श्रद्धालु लगे हुए थे। इसके लिए जगह-जगह सड़क किनारे दुकान भी सजायी गयी है
यहाँ पर ऐसी मान्यता है कि जिस किसी की शादी में बार-बार बाधा आती हो ,यहां पूजा-अर्चना करने से दूर हो जाती है। अपनी कन्याओं के साथ जो अभिभावक माता के चरणों में शीश झुकाते हैं और साड़ी, श्रृंगार सामग्री आदि चढ़ाते हैं, उनकी पुत्री की विवाह में आने वाली सभी तरह की बाधाएं दूर हो जाती है।
बांसघाट काली मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए न केवल राज्य से बल्कि देश के कोने-कोने से साधक आते हैं। खासकर पूर्वी भारत के असम, बंगाल एवं उड़ीसा से साधक आकर तंत्र साधना करते हैं।माता का रोज नई साड़ी से शृंगार, हर शनिवार मंगलवार को भक्तों की भीड़ उमड़ती है। साथ ही नवरात्र में विशेष आयोजन होता है।
उर्वशी गुप्ता