राजस्थान के करणी माता मंदिर में इतने चूहे होने का क्या है रहस्य ?
राजस्थान के बीकानेर ज़िले में विश्व प्रसिद्ध करणी माता का मंदिर है। करणी माता चारण जाति के लोगों की कुलदेवी हैं। इसलिए चारणों को देवीपुत्र भी कहा जाता है।
बीकानेर के देशनोक नगर में स्थित इस मंदिर में हजारों चूहे हैं जिन्हें "काबा" कहते हैं। वैसे चूहे पूरे शहर में और कहीं नहीं मिलेंगे। उन चूहों की खासियत है कि मंदिर परिसर में कोई बदबू नहीं आती। वहां कोई बिल्ली, चील, सांप कभी नहीं आया।
दशकों पहले जब भारत में प्लेग महामारी फैली थी जिसका कारण चूहे माना गया था, तब भी इस मंदिर के या शहर में इन चूहों की वजह से यहां कोई प्लेग जैसी बीमारी नहीं फैली।
मंदिर के चूहे कभी दर्शनार्थियों को परेशान नहीं करते और तो और इस मंदिर परिसर में आने पर आपकी यात्रा को तभी सफल माना जाता है जब हजारों काले चूहों के बीच आपको "सफेद चूहे" के दर्शन होते हैं। वहां सफेद चूहा करणी माता का अवतार माना जाता है।
यहां आपको अपने पैर जमीन पर घसीटकर चलना होता है वो भी बिना चूहों से डरे, पर ये डर जरूर होना चाहिए कि किसी चूहे को कुछ हो ना जाए, क्योंकि अगर कोई चूहा आपसे गलती से मारा जाता है तो आपको चांदी का चूहा चढ़ाना पड़ता है।
अब आते हैं आपके सवाल पर कि इस मंदिर में इतने चूहे कैसे है? बहुत समय पहले करणी माता का दत्तक पुत्र "लाखन" की कोलायत के कपिल सरोवर तालाब में डूबकर मौत हो गई और यमराज उसे यमलोक ले जा रहे थे, तब करणी माता देशनोक में विराजमान थीं। जब उन्हें पता चला तब वे यमराज के पीछे गईं और उनसे पुत्र को छीनकर ले आई। तब यमराज ने नाराज होकर करणी माता को श्राप दिया कि "आज के बाद तेरे वंशज यमलोक में कभी नहीं आयेंगे"। तब करणी माता ने कहा कि "उन्हें मैं अपनी शरण में रखूंगी"।
इसलिए मान्यता है कि देशनोक गांव के चारण जाति के व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वो देशनोक स्थित करणी माता के मंदिर में काबे(चूहे) के रूप में जन्म लेता है और काबे (चूहे) की मृत्यु होती है तो वह उसी गांव में चारण जाति के व्यक्ति के रुप में जन्म लेता है।