भूटान में चीन का दखल क्‍या है ड्रैगन की बड़ी चाल

भूटान में चीन का दखल क्‍या है ड्रैगन की बड़ी चाल

 चीन और भूटान सीमा को लेकर विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक के बाद भारत की चिंता जरूर बढ़ी है। इस बैठक में दोनों देशों के बीच कई वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक थ्री स्टेप रोड मैप के समझौते पर दस्तखत किए गए हैं। चीन की यह नई चाल भूटान नहीं बल्कि भारत के लिए भी चिंता का विषय है। गौरतलब है वर्ष 2017 में डोकलाम क्षेत्र में जब चीन ने सड़क का विस्तार करने का प्रयास किया था तब भारत ने इसका खुलकर विरोध किया था। इसके चलते भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक गतिरोध कायम रहा था। उस वक्त भूटान ने कहा था कि यह क्षेत्र उसका है और उस समय भारत ने भूटान के दावे का समर्थन किया था। चीन का भूटान में किसी भी तरह का दखल भारत के लिए खतरे की घंटी है। सवाल यह है कि आखिर भूटान-चीन के इस समझौते के क्‍या निहितार्थ हैं ? क्‍या है भारत की मूल चिंता ? जानें प्रो. हर्ष वी पंत की राय। देखिए, चीन की यह नीति रही है कि वह हमेशा से ही अपने से कमजोर राष्‍ट्रों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बनाने की कोशिश करता है। इसके पीछे चीन की एक सोची समझी रणनीति है। चीन का मकसद उन कमजोर राष्‍ट्रों को अपने आर्थिक और सैन्य दबाव में लाकर अपने फायदे के फैसले करवाना है। चीन और भूटान के बीच ताजा करार को इसी कड़ी के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। चीन की बड़ी चाल सीमा विवाद को लेकर भूटान के साथ मोलभाव करना है। दरअसल, चीन की नजर भूटान की चुम्बी घाटी पर है। यह भूटान की उत्‍तरी सीमा पर है। भारत-चीन डोकलाम विवाद के समय यह घाटी सुर्खियों में थी। भारत के लिए यह इलाका सामरिक रूप से बेहत खास है। भारत के लिए यह स्‍थान इस लिए भी खास है क्‍योंकि यह सिलीगुड़ी कोरिडोर के निकट है। चीन भूटान से चुंबी घाटी वाला इलाका मांग रहा है और इसके बदले में वह उसे एक दूसरा विवादित इलाका देने को राजी है। यह इलाका चुंबी घाटी से कहीं बड़ा है। सिलीगुड़ी कोर‍िडोर जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है। यह इलाका भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए भारत का एक प्रमुख मार्ग है। अगर चीन सिलीगुड़ी कोरिडोर के करीब आता है तो यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि इससे पूर्वोत्तर राज्यों से कनेक्टिविटी के लिए खतरा बन सकता है। यह चिकन नेक का इलाका भारत के सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से बेहद खास है। अगर इस इलाके में ड्रैगन को थोड़ा सा भी लाभ होता है तो वह भारत के लिए बहुत बड़ा नुकसान होगा। भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद के बाद ड्रैगन की यह रणनीति थी कि वह भूटान से सीधे संपर्क स्‍थापित करे। वह सीधे भूटान से संवाद करे। चीन की तरफ से यह कोशिश लगातार की गई थी। चीन की कोशिश यही है कि वह भूटान के साथ सीधे-सीधे कोई समझौता कर ले, जिसमें भारत की कोई भूमिका नहीं हो। इसका एक मकसद यह भी है कि भूटान के साथ सीमा विवाद सुलझा लेने के बाद चीन भारत पर सीमा विवाद सुलझाने का मनोवैज्ञानिक दबाव बना सकता है। इस वार्ता के पूर्व चीन ने कभी भी भूटान की पूर्वी सीमा का मुद्दा नहीं उठाया, जबकि इसके पूर्व 1984 से चीन और भूटान के मध्य लगातार वार्तालाप के 24 दौर आयोजित किए जा चुके हैं। भूटान की पूरी सीमा अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले को स्पर्श करती है। इसलिए चीन की यह नई चाल भूटान ही नहीं, बल्कि भारत के लिए चिंता का विषय है। चीन के द्वारा भूटान की पूर्वी सीमा पर दावेदारी दबाव बनाने की रणनीति है। इसका प्रत्यक्ष लाभ उसे डोकलाम क्षेत्र में अपनी दावेदारी को मजबूत करने के रूप में मिल सकता है। भूटान और चीन के मध्य डोकलाम जाकरलुंग क्षेत्र तथा पासमलुंग क्षेत्र को लेकर विवाद हैचीन और भूटान के बीच हुए इस समझौते के बाद भारत को और सतर्क हो जाना चाहिए। अगर चुंबी धाटी तक चीन पहुंचने में कामयाब हो गया और उसने वहां रेल लाइन बिछा दी तो यह भारत के लिए बेहद खतरनाक होगा। भारत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। जाहिर है कि चीन, भूटान के साथ समझौता करने में कामयाब हो जाता है तो चुंबी घाटी में उसका प्रभाव बढ़ेगा। इस समय भारतीय सेना की तैनाती सबसे मजबूत है, क्योंकि वह ऊंचाइयों पर तैनात है। इसलिए चीन भले ही सिलीगुड़ी कोरिडोर में सेंध नही लगा पाए, लेकिन ट्राईजंक्शन वाले इलाके में पहुंच जाने से उसके सामरिक फायदे हो सकते हैं।