क्यों मनाया जाता है Raksha Bandhan का त्योहार, जानें इसका महत्व
क्यों मनाया जाता है Raksha Bandhan का त्योहार, जानें इसका महत्व
हर साल सावन महीने के पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और मिठाई खिलाती है. भाई अपनी बहन को उनकी रक्षा करने का वचन देता है. लेकिन क्या आपने सोचा की इस त्योहार को क्यों मनाया जाता है? आइए जानते है
रक्षाबंधन का त्योहार हर साल सावन के महीने की पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं. उन्हें मिठाई खिलाती हैं. वहीं दूसरी ओर भाइयों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बहनों की रक्षा करें. उन्हें दुनिया की सभी बुराइयों से बचाएं. ये त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है. लोग बहुत दिनों पहले से ही इस त्योहार की तैयारियां शुरु कर देते हैं. बाजार रंग-बिंरगी राखियों से सजे नजर आते हैं. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि ये त्योहार मनाया क्यों जाता है. इसका इतिहास क्या है. आइए जानते है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार राजसूय यज्ञ के लिए पांडवों ने भगवान कृष्ण को आमंत्रित किया. उनके मेहमानों में से एक श्री कृष्ण के चचेरे भाई शिशुपाल भी थे. इस दौरान शिशुपाल ने भगवान कृष्ण को बहुत अपमानित किया. जब पानी सिर के ऊपर चला गया तो भगवान कृष्ण को क्रोध आ गया. भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल को खत्म करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा. लेकिन शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र भगवान श्री कृष्ण के पास लौटा तो उनकी तर्जनी उंगली में गहरा घाव हो गया. द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की उंगली को देखा और अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण की उंगली पर बांध दिया. द्रौपदी के स्नेह को देखकर भगवान कृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर स्थिति में हमेशा उनके साथ रहेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया है. इस दौरान भगवान विष्णु ने वामन अवतार में असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा. इसके लिए राजा बलि मान गया. वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली तो राजा बलि को समझ आया कि ये स्वयं भगवान विष्णु हैं. राजा बलि ने भगवान को प्रणाम किया. राजा बलि ने इसके बाद वामन के सामने अगला पग रखने के लिए अपनी शीश को प्रस्तुत किया. इससे भगवान बहुत प्रसन्न हुए. भगवान ने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा. असुर राज बलि ने वरदान में भगवान को अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वरदान मांगा. इससे भगवान अपने ही वरदान में फंस गए. ऐसे में माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह ली. माता लक्ष्मी राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया था.