गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं, क्या है इसका इतिहास
भारत की आज़ादी के तकरीबन ढ़ाई सालों बाद देश को 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान मिला था। भारतीय संविधान को विश्व का सबसे बड़ा संविधान भी कहा जाता है। इसकी रूपरेखा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में पहली बार 1948 को प्रस्तुत की थी। बताया जाता है कि इसके निर्माण में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का वक्त लगा था। संविधान के जरिए ही भारत को लोकतांत्रिक, संप्रभु और गणतंत्र देश घोषित किया गया था।
वैसे तो भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को ही बनकर तैयार हो गया था, लेकिन इसे पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान लागू होने के बाद से ही हर साल इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस खास अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर भव्य कार्यक्रम होता है, जिसमें सैनिकों की परेड के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों की झाकियां भी निकलती हैं। इस खास मौक़े पर राष्ट्रपति इंडिया गेट पर झंडा भी फहराते हैं।
संविधान लागू होने के बाद देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण करते हुए देश को पूर्ण राज्य घोषित किया था। तब से आज तक इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वैसे तो हर साल गणतंत्र दिवस की परेड राजपथ पर होती है, लेकिन इसकी पहली परेड इर्विन स्टेडियम में हुई थी। हालांकि इसके बाद के वर्षों में परेड का स्थान बदलता रहा। 1950 से 1954 के बीच गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन कभी किंग्सवे कैंप, कभी लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में होता था। 1955 के बाद से गणतंत्र दिवस की परेड रायसीला पहाड़ी से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरते हुए आठ किलोमीटर की दूरी तय करके लाल किले पर खत्म होती है।
आपको बता दें एक वक्त ऐसा भी था, जब स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त की जगह 26 जनवरी को मनाया जाता था। दरअसल पंडित नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें कहा गया था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा नहीं दिया तो उसे पूर्ण रूप से स्वतंत्र घोषिथ कर दिया जाएगा।