समकालीन सामाजिक संदर्भो में समय की मांग है सबके लिए एकसमान कानून

समकालीन सामाजिक संदर्भो में समय की मांग है सबके लिए एकसमान कानून

समान नागरिक संहिता का मामला लंबे समय से हमारे लिए एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय के रूप में रहा है। उच्च न्यायालयों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक ने इस संदर्भ में कई बार टिप्पणी की है। चूंकि हमारे देश में कई धर्मो के पर्सनल कानून हैं, इसलिए सरकार ने विधि आयोग से समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न पक्षों की जांच करने और अपनी संस्तुति प्रस्तुत करने का आग्रह किया है। विधि आयोग की संस्तुति आने के बाद ही सरकार इस मसले पर आगे बढ़ेगी। यही वजह है कि अभी यह बताना संभव नहीं हो सका है कि सरकार समान नागरिक संहिता कब लागू करेगी।मालूम हो कि समय-समय पर उच्चतम न्यायालय ने समान नागरिक संहिता की वकालत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णय और टिप्पणियां सार्वजनिक पटल पर हमेशा से चर्चा में रही हैं। पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा समान नागरिक संहिता पर की गई टिप्पणियां भी काफी चर्चा में रही थीं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि ‘समान नागरिक संहिता’ संविधान के ‘नीति निदेशक तत्व’ में शामिल है। संविधान, नीति निदेशक तत्व के माध्यम से यह बताता है कि सरकार को क्या-क्या करना चाहिए। लेकिन उसे इन सभी चीजों को करने के लिए कोई बाध्यता आरोपित नहीं करता है कि सरकार को यह ‘करना ही होगा।’ इस मामले पर न्यायालय में न तो कोई ‘वाद’ कायम कराया जा सकता है और न ही लागू कराने के लिए आदेश ही जारी कराया जा सकता। यह सब तो सरकार पर निर्भर करता है कि वह ‘समान नागरिक संहिता’ को लागू करे या नहीं करे। यही वजह है कि सरकार इस मामले में बहुत ही सावधानी से कदम बढ़ा रही है, जिसकी वजह से इस मामले में विलंब होना स्वाभाविक है।