100 साल की दादी के मरने पर महिलाओं ने दिया अर्थी को कंधा, नवादा में टूटी परंपरा को लोगों ने सराहा

100 साल की दादी के मरने पर महिलाओं ने दिया अर्थी को कंधा, नवादा में टूटी परंपरा को लोगों ने सराहा

 100 साल की दादी की मौत पर महिलाओं ने दकियानूसी परंपरा को तोड़ दिया, जिसकी लोगों ने खूब सराहना की। हालांकि, ऐसा पहले भी हुआ है। महिलाओं ने वृद्ध सुगिया देवी की अर्थी को कंधा देकर श्‍मशाम घाट पहुंचाया। मगर इस बार बड़ी बात ये रही कि सभी महिलाएं अनुसूचित जाति की हैं। मृतका सुगिया देवी समाजसेवी आलोक रविदास की दादी थीं। जब अनुसूचित जाति की महिलाओं ने रूढि़वादी परंपरा को त्‍याग कर वृद्धा की अर्थी को कंधा दिया तो लोगों ने कहा कि हर वर्ग में सार्थक बदलाव हो रहा है और यही बिहार में विकास की पहचान है।महिलाओं का कहना है कि समाज में महिलाओं की भी उतना ही महत्व है, जितना पुरुषों का है। ऐसे हर काम में महिलाओं की बराबरी की भूमिका होनी चाहिए। यही कारण है कि हम महिलाएं भी इस कार्य में अपनी भूमिका निभा रही हूं। समाजसेवी आलोक रविदास ने बताया कि रूढि़वादी व्यवस्था के कारण गरीब तबके के लोग परेशान होते हैं। इस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए महिलाओं को हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि महिलाओं को चौका-चूल्‍हा से बाहर निकलने की जरूरत है। अगर दृढ़ संकल्‍प और आत्‍मविश्‍वास हो तो वे हर पद पर कब्‍जा कर सकती हैं। राजनीति से लेकर उच्‍च पदों पर अनुसूचित जाति की महिलाएं पहुंच चुकी हैं। उन्‍हें प्रोत्‍साहित करने की जरूरत है। मौका मिलता रहा तो वे खुद को बेहतर साबित कर सकती हैं।