अमीरी-ग़रीबी के बीच ये कैसी खाई...

अमीरी-ग़रीबी के बीच ये कैसी खाई...

अमीरी-गरीबी के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। आक्सफेम की नई रिपोर्ट में ये बाते सामने आई है कि भारत में अरबपतियों की संख्या और बढ़ गई है। सिर्फ एक साल के अंदर और 40 लोग अरबपतियों की सूची में शामिल हो गए। यानी भारत में अब 142 अरबपति हैं और इनमें से 40 अरबपति पिछले साल 2021 में बने हैं।

देश अपने इन अरबपतियों की बढ़ती संख्या पर खुश इसलिए हो सकता है कि दुनिया में सिर्फ अमेरिका और चीन में भारत से ज्यादा अरबपति हैं। ऐसे में कौन कहेगा कि भारत अमीरों का देश नहीं है, लेकिन एक देश के तौर पर हम कितने संपन्न हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। वर्तमान समय में गरीबी की तस्वीर कहीं ज्यादा भयावह है। ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि बढ़ते अमीरों के देश में गरीब और गरीब क्यों होते जा रहे हैं?

गौरतलब है कि स्विटजरलैंड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच का सालाना सम्मेलन शुरू हो चुका है। यह सम्मेलन हर साल इसी शहर में जनवरी के तीसरे हफ्ते में होता है। इसमें दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के राष्ट्र प्रमुख और उद्योगपति जुटते हैं और खासतौर से भविष्य की आर्थिकी को लेकर चर्चा करते हैं, रणनीतियां बनाते हैं। लेकिन साथ ही गरीबी का सवाल भी इसी समय उठता है। भारत में अमीर बढ़ रहे हैं, यह बात तो सुकून देती है, लेकिन उस सुकून से ज्यादा चिंताजनक और दुखदायी हकीकत यह है कि देश में गरीब और तेजी से गरीब हो रहे हैं और इनकी संख्या बढ़ रही है।

भारत में पिछले एक साल में 40 अरबपतियों का बढ़ जाना हैरानी इसलिए पैदा करता है,  क्योंकि इसी एक साल में देश में आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे चला गया। मोटे तौर पर गरीबों का यह आंकड़ा सात से दस करोड़ के बीच है। कोरोना महामारी के दौर में पिछले साल यानी 2021 में करीब 84 प्रतिशत लोगों की आय में भारी गिरावट आई। रोजाना कमाने-खाने वाले तबके पर तो असर पड़ा ही, लेकिन उससे भी ज्यादा असर मध्यवर्ग पर पड़ा। इस दौरान छोटे-मोटे उद्योग-धंधे बंद हो गए। करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई। ऐसे में आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी के गर्त में चला गया।

भारत के सामने अब यह चुनौती और गंभीर हो गई है कि अन्य लोगों को गरीबी के गड्ढे में गिरने से कैसे बचाया जाए, क्योंकि जिस तरह के आर्थिक हालात बने हुए हैं, उन्हें अभी पटरी पर लाने में लंबा समय लगेगा। कहने को सरकार ने पिछले दो साल में उद्योगों को कई तरह की रियायतें दी हैं। लेकिन इन सबसे गरीबों का कोई भला होता नहीं दिख रहा। कुछ महीनों के लिए मुफ्त राशन जैसे कदम गरीबों के लिए तात्कालिक मरहम तो साबित हो सकते हैं, पर गरीबी से उबारने में ये मददगार नहीं होते।

आज हालत यह है कि एक दिन में महज 100-150 रुपए भी नहीं कमा पाने वालों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है। भारत के लिए यह एक बड़ा संकट है। बेरोजगारी और महंगाई ने गरीबी पर और ज्यादा हमला किया है। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमीर के और ज़्यादा अमीर बनने के पीछे सरकारी नीतियां ही होती हैं। इसलिए ऐसी आर्थिक नीतियों की जरूरत है जो गरीबों को भी खुशहाली के रास्ते पर ले जाने वाली हो। यानी रोज़गार पैदा करने वाली हो। काम होगा, लोगों के हाथों में पैसा आएगा, तभी लोग गरीबी के चंगुल से निकल पाएंगे।