आंदोलन का रुख हो सही.., छद्म नाम के लेख से दिया था एक संदेश, जानिए- कौन था वो क्रांतिकारी

आंदोलन का रुख हो सही.., छद्म नाम के लेख से दिया था एक संदेश, जानिए- कौन था वो क्रांतिकारी

सितंबर 1928 के ‘किरती’ में ‘एक निर्वासित’ एम.ए. के छद्म नाम से एक क्रांतिकारी लेख प्रकाशित हुआ था। वास्तव में इसे गदर पार्टी के संस्थापक सचिव लाला हरदयाल ने लिखा था...

दुनिया-भर में दर्शनशास्त्रों तथा भ्रातृत्व के उपदेश की सारी उलझनों और मुसीबतों के होते हुए भी एक बात बिल्कुल स्पष्ट रूप से सामने है। वह यह कि दुनिया इस समय अनेक वर्गों में बंटी हुई है। जो मनुष्य इस सच्चाई को नजरअंदाज करता है या जो ईश्वर के बंदों की सच्ची सेवा करना चाहता है वह उस ज्योतिषी के समान है जो कि कोशिश के सिद्धांत तथा सितारों की गर्दिश से अनजान है। खाली, बेवकूफ और निकम्मा है।इस समय दुनिया में अलग-अलग पार्टियां मौजूद हैं, लेकिन सरसरी निगाह से देखने पर हम दो प्रकार के वर्गों को तो स्पष्ट तौर पर देखते हैं। दुनियाभर में इस वर्ग विभाजन को जताने के लिए तमाम भाषा-बोलियों में अपने-अपने शब्द मौजूद हैं। इनमें एक तो वह जो शारीरिक श्रम करके कुछ अर्जित करता है, जिन्हें मेहनतकश वर्ग में शामिल किया गया है और दूसरा, वह जो मेहनत नहीं करता, यानी खुशहाल वर्ग जो, मेहनत का उपभोग करता है। प्रत्येक मेहनतकश व्यक्ति की यह इच्छा रहती है कि उसका पुत्र उन्नति करे और खुशहाल वर्ग में शामिल हो जाए। जो लोग अनाज, मेवे, सब्जी पैदा नहीं करते, बल्कि इन चीजों का इस्तेमाल करते और खाते हैं, वास्तव में वही बेचारे किसान की मेहनत का लाभ उठाते हैं। लेकिन, जब हम देखते हैं कि खेती करने वाले उस मेहनतकश किसान को इन मुफ्तखोर लोगों की तरह अच्छी खुराक तक नहीं मिलती, तो दिल में ख्याल आता है कि इस व्यवस्था में जरूर कहीं न कहीं धोखा है। यह मसला ‘सर्व दर्शन संग्रह’ आदि शास्त्रों की 16 प्रकार की फिलासफी पढ़ने से हल नहीं हो सकता।