मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है
मकर संक्रान्ति पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। व्याकरण के दृष्टिकोण से ‘क्रान्त’ कहते हैं लाँघने या पार करने को। किसी चीज़ या सिस्टम को पार करना, उसे लाँघना ‘क्रान्ति’ हुई। फिर जब इसी क्रान्ति में ‘सम्’ लग गया पहले, तो यह ‘संक्रान्ति’ हो गयी। प्रॉपर या अभीष्ट क्रान्ति को आप संक्रान्ति कहते हैं। मकर संक्रान्ति में सूर्य धनु राशि को पार करके मकर में प्रवेश करता है। यह जाड़े को लाँघकर गर्मी में प्रवेश करना है । शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। मकर संक्रान्ति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच छः मास के समय अंतराल को उत्तरायण कहते हैं। उत्तरायण का अभिप्राय है- (उत्तर +आयण =उत्तरायण) उत्तर में आना । अर्थात सूर्य का उत्तर में आना(सूर्य का ठीक पूर्व दिशा से न निकलकर थोडा उत्तर दिशा से निकलना ) इसके विपरीत कर्क संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति के बीच के छः मास के काल को दक्षिणायन कहते हैं। उत्तरायण का आरम्भ 14 या 15 जनवरी (इसबार 15 जनवरी) को होता है। जब सूर्य देवता मकर राशि में प्रवेश करते हैं । दक्षिणायन का आरम्भ 14 जुलाई को होता है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है । ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। सूर्य देव के उत्तरायण में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में हिंदुओं द्वारा मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नाम से मनाया जाता है ।