पाकिस्तान के इरादों को समझने की जरूरत, सिद्धू जैसे नेता स्वयं को इस वास्तविकता से परिचित कराएं

पाकिस्तान के इरादों को समझने की जरूरत, सिद्धू जैसे नेता स्वयं को इस वास्तविकता से परिचित कराएं

पाकिस्तानी सियासत में 17 नवंबर की तारीख बड़े सियासी घटनाक्रम की गवाह बनी। इमरान सरकार ने इस दिन संसद के संयुक्त सत्र में ताबड़तोड़ अंदाज में 33 विधेयक पारित कराए। विपक्षी दलों के बहिर्गमन और बेकाबू हालात के बीच यह असाधारण कदम उठाया गया। इसके लिए संयुक्त सत्र का दांव इसलिए चला गया, क्योंकि सरकार सामान्य विधायी प्रक्रिया से इन विधेयकों को पारित कराने को लेकर आश्वस्त नहीं थी। माना जाता है कि इमरान खान को पर्दे के पीछे से सेना का समर्थन मिला, ताकि वह संयुक्त सत्र के पड़ाव को सफलतापूर्वक पार कर सके। संसद के इस संयुक्त सत्र की कार्रवाई से पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की कई झलकियां दिखती हैं। उनका वास्ता पाकिस्तानी सेना और इमरान खान सरकार के बीच संबंधों से लेकर विपक्षी दलों तक से है। इन पहलुओं की पड़ताल इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वे इमरान खान के राजनीतिक भविष्य और पाकिस्तान में नागरिक-सैन्य रिश्तों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं।हाल में इमरान पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा द्वारा आइएसआइ के महानिदेशक ले.ज. फैज हमीद को उनके पद से हटाकर उनकी नई नियुक्ति के फैसले से असहमत थे। हमीद के स्थान पर बाजवा ने कराची कार्प्स कमांडर ले.ज. नदीम अंजुम को आइएसआइ का नया मुखिया बनाने का फैसला किया। सेना ने 6 अक्टूबर इसकी औपचारिक घोषणा कर दी। पाकिस्तानी सेना से जुड़ी वरिष्ठ नियुक्तियों में वैसे तो सेना प्रमुख का निर्णय ही अंतिम माना जाता है, परंतु आइएसआइ मुखिया के मामले में प्रधानमंत्री की सहमति जरूरी है। अंजुम की नियुक्ति पर इमरान ने शुरुआती हिचक दिखाई। वह चाहते थे कि आइएसआइ की कमान हमीद के हाथ में ही रहे।