बिहार में गणेश चतुर्थी के साथ चांद की पूजा, गणेश पूजन के बाद होगी चौरचन व्रत जानें क्यों
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है और इसी दिन चौरचन भी मनाया जाता है. जिसमें चांद की पूजा की जाती है. यह पूजा खासकर मिथिला में मनाया जाता है जिसे चौठचंद्र (चौरचन) कहा जाता है. इस पर्व में चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है. बिहार में मिथिला के अलावा भोजपुर, सीमांचल और कोसी में मनाया जाता है. चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. बिहार के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है, उन्हें प्रकृति से जीवन के निर्वहन करने के लिए सभी चीजें मिली हुई हैं और वे लोग इसका पूरा सम्मान करते हैं. इस प्रकार यहां की संस्कृति में प्रकृति की पूजा उपासना का विशेष महत्व है और इसका अपना वैज्ञानिक आधार भी है.बिहार में गणेश चतुर्थी के दिन चौरचन पर्व मानाया जाता है. कई जगहों पर इसे चौठचंद्र नाम से भी जाना जाता है. इस दिन लोग काफी उत्साह में दिखाई देते हैं. लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं. इसके लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा करती हैं.सूर्यास्त होने और चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले अरिपन (बिहार में कच्चे चावल को पीसकर बनाई जाने वाली अल्पना या रंगोली) बनाया जाता है. उस पर पूजा-पाठ की सभी सामग्री रखकर गणेश तथा चांद की पूजा करने की परंपरा है. इस पूजा-पाठ में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है.