चुनाव में मुफ़्त वादे वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
चुनावी मौसम आते ही सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने में लग जाते हैं। इसे लेकर कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। मामला यह है कि चुनावों में राजनीतिक दलों की तरफ से मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहारों के वादे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई। आपको बता दें कि दायर की गई एक याचिका पर CJI एन वी रमना ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह एक गंभीर मुद्दा है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च अदालत इससे पहले कई बार कह चुका है कि यह कोई खेल का मैदान नहीं है, जहां उपहार की सौगात हो।
दरअसल राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह ज़ब्त करने या उनकी मान्यता रद्द करने को लेकर दिशा-निर्देश देने की अपील करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि चुनाव में मुफ्त वादों का मुद्दा गंभीर है। मुफ्त बजट नियमित बजट से परे है। भले ही यह एक भ्रष्ट आचरण नहीं है, लेकिन यह एक असमान स्थिति पैदा करता है।
आपको बता दें कि भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई जनहित याचिका में कहा गया कि पंजाब चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी की तरफ से 18 वर्ष की उम्र की सभी महिलाओं को 1,000 रुपये हर महीने देने का वादा किया गया है। भाजपा नेता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने आखिर दो दलों का ही जिक्र क्यों किया। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव में तो तमाम राजनैतिक दलों की तरफ से फ्री गिफ्ट देने का वादा किया जा रहा है, लेकिन आपने सिर्फ दो ही पार्टियों का जिक्र अपनी याचिका में क्यों किया। अन्य दलों का क्यों नहीं? ग़ौरतलब है कि कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।
कोर्ट ने कहा कि चुनाव को प्रभावित करने वाले इस तरह के गंभीर मसले में अदालत के दखल का दायरा काफी सीमित है। इसपर हमने चुनाव आयोग को गाइडलाइंस बनाने के लिए निर्देशित किया था लेकिन आयोग ने सिर्फ एक मीटिंग की, उसका नतीजा क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है।